यीशु ने अपने दुख और मौत बारे में बोलते है
Matthew 16:21
21 उस समय से यीशु अपने चेलों को बताने
लगा, कि मुझे अवश्य है, कि यरूशलेम को जाऊं, और पुरनियों और महायाजकों और
शास्त्रियों के हाथ से बहुत दुख उठाऊं; और मार डाला जाऊं; और तीसरे दिन जी
उठूं।
Matthew 17:22,23
21 जब वे गलील में थे, तो यीशु ने उन से कहा; मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा।
22 और वे उसे मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।
यीशु प्रार्थना
Luke 22:39-46
39 तब वह बाहर निकलकर अपनी रीति के अनुसार जैतून के पहाड़ पर गया, और चेले उसके पीछे हो लिए।
40 उस जगह पहुंचकर उस ने उन से कहा; प्रार्थना करो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो।
41 और वह आप उन से अलग एक ढेला फेंकने के टप्पे भर गया, और घुटने टेक कर प्रार्थना करने लगा।
42 कि हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।
43 तब स्वर्ग से एक दूत उस को दिखाई दिया जो उसे सामर्थ देता था।
44 और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल
होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लोहू
की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था।
45 तब वह प्रार्थना से उठा और अपने चेलों के पास आकर उन्हें उदासी के मारे सोता पाया; और उन से कहा, क्यों सोते हो?
46 उठो, प्रार्थना करो, कि परीक्षा में न पड़ो॥
यीशु की गिरफ्तारी
Matthew 26:47-56
47 वह यह कह ही रहा था, कि देखो यहूदा
जो बारहों में से एक था, आया, और उसके साथ महायाजकों और लोगों के पुरनियों
की ओर से बड़ी भीड़, तलवारें और लाठियां लिए हुए आई।
48 उसके पकड़वाने वाले ने उन्हें यह पता दिया था कि जिस को मैं चूम लूं वही है; उसे पकड़ लेना।
49 और तुरन्त यीशु के पास आकर कहा; हे रब्बी नमस्कार; और उस को बहुत चूमा।
50 यीशु ने उस से कहा; हे मित्र, जिस काम के लिये तू आया है, उसे कर ले। तब उन्होंने पास आकर यीशु पर हाथ डाले, और उसे पकड़ लिया।
51 और देखो, यीशु के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार खींच ली और महायाजक के दास पर चलाकर उस का कान उड़ा दिया।
52 तब यीशु ने उस से कहा; अपनी तलवार काठी में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएंगे।
53 क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से बिनती कर सकता हूं, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा?
54 परन्तु पवित्र शास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, क्योंकर पूरी होंगी?
55 उसी घड़ी यीशु ने भीड़ से कहा;
क्या तुम तलवारें और लाठियां लेकर मुझे डाकू के समान पकड़ने के लिये निकले
हो? मैं हर दिन मन्दिर में बैठकर उपदेश दिया करता था, और तुम ने मुझे नहीं
पकड़ा।
56 परन्तु यह सब इसलिये हुआ है, कि भविष्यद्वक्ताओं के वचन के पूरे हों: तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए॥
यीशु महासभा के सामने
Matthew 26:57-68
57 और यीशु के पकड़ने वाले उस को काइफा नाम महायाजक के पास ले गए, जहां शास्त्री और पुरिनए इकट्ठे हुए थे।
58 और पतरस दूर से उसके पीछे पीछे महायाजक के आंगन तक गया, और भीतर जाकर अन्त देखने को प्यादों के साथ बैठ गया।
59 महायाजक और सारी महासभा यीशु को मार डालने के लिये उसके विरोध में झूठी गवाही की खोज में थे।
60 परन्तु बहुत से झूठे गवाहों के आने पर भी न पाई।
61 अन्त में दो जनों ने आकर कहा, कि उस ने कहा है; कि मैं परमेश्वर के मन्दिर को ढा सकता हूं और उसे तीन दिन में बना सकता हूं।
62 तब महायाजक ने खड़े होकर उस से
कहा, क्या तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते
हैं? परन्तु यीशु चुप रहा: महायाजक ने उस से कहा।
63 मैं तुझे जीवते परमेश्वर की शपथ देता हूं, कि यदि तू परमेश्वर का पुत्र मसीह है, तो हम से कह दे।
64 यीशु ने उस से कहा; तू ने आप ही
कह दिया: वरन मैं तुम से यह भी कहता हूं, कि अब से तुम मनुष्य के पुत्र को
सर्वशक्तिमान की दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे।
65 तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, इस ने परमेश्वर की निन्दा की है, अब हमें गवाहों का क्या प्रयोजन?
66 देखो, तुम ने अभी यह निन्दा सुनी है! तुम क्या समझते हो? उन्होंने उत्तर दिया, यह वध होने के योग्य है।
67 तब उन्होंने उस के मुंह पर थूका, और उसे घूंसे मारे, औरों ने थप्पड़ मार के कहा।
68 हे मसीह, हम से भविष्यद्ववाणी करके कह: कि किस ने तुझे मारा?
यीशु पीलातुस के सामने
Matthew 27:11-14
11 जब यीशु हाकिम के साम्हने खड़ा था, तो हाकिम ने उस से पूछा; कि क्या तू यहूदियों का राजा है? यीशु ने उस से कहा, तू आप ही कह रहा है।
12 जब महायाजक और पुरिनए उस पर दोष लगा रहे थे, तो उस ने कुछ उत्तर नहीं दिया।
13 इस पर पीलातुस ने उस से कहा: क्या तू नहीं सुनता, कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियां दे रहे हैं?
14 परन्तु उस ने उस को एक बात का भी उत्तर नहीं दिया, यहां तक कि हाकिम को बड़ा आश्चर्य हुआ।
यीशु को जा सुनाई
Matthew 27:15-26
15 और हाकिम की यह रीति थी, कि उस पर्व्व में लोगों के लिये किसी एक बन्धुए को जिसे वे चाहते थे, छोड़ देता था।
16 उस समय बरअब्बा नाम उन्हीं में का एक नामी बन्धुआ था।
17 सो जब वे इकट्ठे हुए, तो
पीलातुस ने उन से कहा; तुम किस को चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये छोड़
दूं? बरअब्बा को, या यीशु को जो मसीह कहलाता है?
18 क्योंकि वह जानता था कि उन्होंने उसे डाह से पकड़वाया है।
19 जब वह न्याय की गद्दी पर बैठा
हुआ था तो उस की पत्नी ने उसे कहला भेजा, कि तू उस धर्मी के मामले में हाथ न
डालना; क्योंकि मैं ने आज स्वप्न में उसके कारण बहुत दुख उठाया है।
20 महायाजकों और पुरनियों ने लोगों को उभारा, कि वे बरअब्बा को मांग ले, और यीशु को नाश कराएं।
21 हाकिम ने उन से पूछा, कि इन दोनों में से किस को चाहते हो, कि तुम्हारे लिये छोड़ दूं? उन्होंने कहा; बरअब्बा को।
22 पीलातुस ने उन से पूछा; फिर यीशु को जो मसीह कहलाता है, क्या करूं? सब ने उस से कहा, वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।
23 हाकिम ने कहा; क्यों उस ने क्या बुराई की है? परन्तु वे और भी चिल्ला, चिल्लाकर कहने लगे, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए”।
24 जब पीलातुस ने देखा, कि कुछ बन
नहीं पड़ता परन्तु इस के विपरीत हुल्लड़ होता जाता है, तो उस ने पानी लेकर
भीड़ के साम्हने अपने हाथ धोए, और कहा; मैं इस धर्मी के लोहू से निर्दोष
हूं; तुम ही जानो।
25 सब लोगों ने उत्तर दिया, कि इस का लोहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो।
26 इस पर उस ने बरअब्बा को उन के लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए॥
सैनिकों कi यीशु को तिरस्कार
27 तब हाकिम के सिपाहियों ने यीशु को किले में ले जाकर सारी पलटन उसके चहुं ओर इकट्ठी की।
28 और उसके कपड़े उतारकर उसे किरिमजी बागा पहिनाया।
29 और काटों को मुकुट गूंथकर उसके
सिर पर रखा; और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर
उसे ठट्ठे में उड़ाने लगे, कि हे यहूदियों के राजा नमस्कार।
30 और उस पर थूका; और वही सरकण्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे।
31 जब वे उसका ठट्ठा कर चुके, तो वह बागा उस पर से उतारकर फिर उसी के कपड़े उसे पहिनाए, और क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले॥
यीशु को सूली पर चढ़ाये
Luke 23:26-38
26 जब वे उसे लिए जाते थे, तो उन्होंने
शमौन नाम एक कुरेनी को जो गांव से आ रहा था, पकड़कर उस पर क्रूस को लाद
दिया कि उसे यीशु के पीछे पीछे ले चले॥
27 और लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली: और बहुत सी स्त्रियां भी, जो उसके लिये छाती-पीटती और विलाप करती थीं।
28 यीशु ने उन की ओर फिरकर कहा; हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिये मत रोओ; परन्तु अपने और अपने बालकों के लिये रोओ।
29 क्योंकि देखो, वे दिन आते हैं, जिन में कहेंगे, धन्य हैं वे जो बांझ हैं, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्हों ने दूध न पिलाया।
30 उस समय वे पहाड़ों से कहने लगेंगे, कि हम पर गिरो, और टीलों से कि हमें ढाँप लो।
31 क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?
32 वे और दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ घात करने को ले चले॥
33 जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते
हैं पहुंचे, तो उन्होंने वहां उसे और उन कुकिर्मयों को भी एक को दाहिनी और
और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया।
34 तब यीशु ने कहा; हे पिता,
इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं और उन्होंने
चिट्ठियां डालकर उसके कपड़े बांट लिए।
35 लोग खड़े खड़े देख रहे थे, और
सरदार भी ठट्ठा कर करके कहते थे, कि इस ने औरों को बचाया, यदि यह परमेश्वर
का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले।
36 सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका ठट्ठा करके कहते थे।
37 यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा।
38 और उसके ऊपर एक पत्र भी लगा था, कि यह यहूदियों का राजा है।
एक आपराधिक कi पश्चाताप
39 जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उन में से एक ने उस की निन्दा करके कहा; क्या तू मसीह नहीं तो फिर अपने आप को और हमें बचा।
40 इस पर दूसरे ने उसे डांटकर कहा, क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है।
41 और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं;
पर इस ने कोई अनुचित काम नहीं किया।
42 तब उस ने कहा; हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।
43 उस ने उस से कहा, मैं तुझ से सच कहता हूं; कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा॥
44 और लगभग दो पहर से तीसरे पहर तक सारे देश में अन्धियारा छाया रहा।
45 और सूर्य का उजियाला जाता रहा, और मन्दिर का परदा बीच में फट गया।
46 और यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा; हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं: और यह कहकर प्राण छोड़ दिए।
47 सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर, परमेश्वर की बड़ाई की, और कहा; निश्चय यह मनुष्य धर्मी था।
48 और भीड़ जो यह देखने को इकट्ठी हुई भी, इस घटना को, देखकर छाती- पीटती हुई लौट गई।
49 और उसके सब जान पहचान, और जो स्त्रियां गलील से उसके साथ आई थीं, दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं॥
यीशु कi दफनाने
50 और देखो यूसुफ नाम एक मन्त्री जो सज्जन और धर्मी पुरूष था।
51 और उन के विचार और उन के इस काम
से प्रसन्न न था; और वह यहूदियों के नगर अरिमतीया का रहनेवाला और परमेश्वर
के राज्य की बाट जोहनेवाला था।
52 उस ने पीलातुस के पास जाकर यीशु की लोथ मांग ली।
53 और उसे उतारकर चादर में लपेटा, और एक कब्र में रखा, जो चट्टान में खोदी हुई थी; और उस में कोई कभी न रखा गया था।
54 वह तैयारी का दिन था, और सब्त का दिन आरम्भ होने पर था।
55 और उन स्त्रियों ने जो उसके साथ गलील से आईं थीं, पीछे पीछे जाकर उस कब्र को देखा, और यह भी कि उस की लोथ किस रीति से रखी गई है।
56 और लौटकर सुगन्धित वस्तुएं और इत्र तैयार किया: और सब्त के दिन तो उन्होंने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया॥